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Talat Jamal

Tragedy Crime Thriller

4.8  

Talat Jamal

Tragedy Crime Thriller

चलते हैं ज़िंदगी

चलते हैं ज़िंदगी

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ना रंज है ना कोई ख्वाहिश है अब बची 

चलते हैं ज़िंदगी तेरी बिसात खतम हुई 


चलते हुए ना जानें कब मंज़िल है आ मिली 

साँसों को अलविदा कहने की नौबत ही आ पड़ी 


मिलनें की जिनसे जुस्तजू में जी रहे थे हम 

मिलना हुआ उस मोड़ पर जहाँ मौत थी खड़ी 


माफ़ी तलाफी की हमें मिली है मोहलत नसीब से 

कितने ही चल दिये जिन्हें ये इजाज़त भी ना मिली 


खुश हूँ मैं अपने आस-पास अपनों को देख कर 

मयस्सर तो होगी मैयत को मेरी आखिरी नमाज़ भी 


फाताह पड़ेंगे कुछ मेरी कुछ मुस्कुराएंगे 

अच्छी रही ये ज़िंदगी जितनी मुझे मिली 


कितना सताया तूने मुझे ऐ ज़िंदगी 

आया सुकूँ मुझको जब गले मौत आ लगी 


है पाक़ गुनाहों से रूह मेरी इतना तो है यक़ीं 

ताऊम्र मैनें वफ़ादारी से माँ बाप की सुनी 


ना रंज है ना कोई ख्वाहिश है अब बची 

चलते हैं ज़िंदगी तेरी बिसात खतम हुई 


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