पिता
पिता
बचपन से हर किसी से मैनें
जन्नत का ये पता सुना है।
माँ के पैरों तले है जन्नत
जिसकी कुंजी होता पिता है।
वैसे तो इस जहां में सबके
अपने होते और गैर भी होते
लेकिन पिता वो साथी है जो
बिन मांगे हर मुराद समझे।
बेटी का पहरेदार है वो
बेटे का हमसाया है
अदब से उनका नाम लेना
उनसे घर में उजियारा है।
