ग़र्क़ उसकी तमाम कायनात हो रही है रोशनी की किरण की रोशनी जा रही है। ग़र्क़ उसकी तमाम कायनात हो रही है रोशनी की किरण की रोशनी जा रही है।
बन चुका है दिल मेरा जैसे कब्रगाह कोई, इसमें कफन ओढ़कर सोई कई दास्तां देखा करती हूँ बन चुका है दिल मेरा जैसे कब्रगाह कोई, इसमें कफन ओढ़कर सोई कई दास्तां देखा करत...
बिठा दिया उसे रसोई घर में सीखने को नये -नये पकवान बिठा दिया उसे रसोई घर में सीखने को नये -नये पकवान
जहाँ इंसान तो है, पर जीना नहीं आया। जहाँ लुटती हर पल है असमत ज़नानी की। जहाँ इंसान तो है, पर जीना नहीं आया। जहाँ लुटती हर पल है असमत ज़नानी की।