ख्यालों का जहां
ख्यालों का जहां
अक्सर ख्यालों का ऐसा जहां देखा करती हूँ
जिसकी न कोई जमीं न आसमां देखा करती हूँ,
जाने फिरता है कौन मुझमें हर पल दर बदर?
दिल पर एहसासों के धुँधले निशां देखा करती हूँ,
यूँ तो मैं ही माली हूँ अपने दिल के चमन की, फिर
भी उजड़ा हुआ क्यूँ ये गुलिस्तां देखा करती हूँ?
सोचती हूँ के थकते नहीं, कदम क्यूँ ख्यालों के
न थमने वाला इनका जब कारवां देखा करती हूँ,
बन चुका है दिल मेरा जैसे कब्रगाह कोई, इसमें
कफन ओढ़कर सोई कई दास्तां देखा करती हूँ,
ख्यालों की भीड़ है पर सफर दिल का तन्हा है
फिर "तुम्हारे लिए" क्यूँ रहनुमा देखा करती हूँ?