जहाँ इंसान तो है, पर जीना नहीं आया। जहाँ लुटती हर पल है असमत ज़नानी की। जहाँ इंसान तो है, पर जीना नहीं आया। जहाँ लुटती हर पल है असमत ज़नानी की।