STORYMIRROR

यामिनी

यामिनी

1 min
734


रात !केअँधकार में

परिलक्षित

जीवन के चिन्ह

प्रकाशवान

संसार से

सर्वथा भिन्न।

रात के निर्वात में

सरिता“मौन”गा रही

मस्त पवन इठला रही

अल्हड़ कली,

चटखने जा रही।

पूनम का धवल चाँद

बिखरी हुई चाँदनी,

प्रणय को उकसा रही

देख धरा मुस्कारा रही

टिमटिमाते जुगनूओं की

प्रेयसी बनी निशा

अपने ही श्रंगार पर

मुग्ध हो रहा

हरसिंगार

तिमिर की चादर पे

बिखरें हैं

ओस के मोती

रात के अंतिम

पहर में,देखो!

आ गया है सुकवा

टूट गयी

निद्रा की तंद्रा

सचेत हो

उठ बैठी है दूर्वा।


Rate this content
Log in

More hindi poem from डॉ रचनासिंह "रश्मि"

Similar hindi poem from Romance