प्रेयसी बनी निशा अपने ही श्रंगार पर मुग्ध हो रहा हरसिंगार तिमिर की चादर पे बिखरें हैं प्रेयसी बनी निशा अपने ही श्रंगार पर मुग्ध हो रहा हरसिंगार तिमिर की चादर पे ...
परिवर्तन की चाह लिये धधकती, सुलगती ज्वाला हूँ... परिवर्तन की चाह लिये धधकती, सुलगती ज्वाला हूँ...
आज मुझे विष पीना होगा। आज मुझे विष पीना होगा।
मुझको भी आलोकित कर दो मुझको भी आलोकित कर दो
हर दीपक के तले अंधेरा, दूर दूर तक कहाँ सवेरा। हर दीपक के तले अंधेरा, दूर दूर तक कहाँ सवेरा।
चमक है चारों ओर स्वयं भी आनन्दित हो दूसरों को भी कर। चमक है चारों ओर स्वयं भी आनन्दित हो दूसरों को भी कर।