मुझको भी आलोकित कर दो
मुझको भी आलोकित कर दो
सूरज दादा सूरज दादा
इतने पीत वर्ण कैसे हो
लगता है कुंदन के बने हो
कुंदन थोड़ा मुझमें भर दो
मैं भी जग में चमका करूँगा
मुझको भी आलोकित कर दो
सुबह सवेरे जग जाते हो
भोर की लाली तुम लाते हो
कुम्हलाई कलियों को खिलाकर
अंबर में तुम मुस्काते हो
परसेवा हिय में मेरे भर दो
मुझको भी आलोकित कर दो
सर्दी, गर्मी, ठंडी, वर्षा
तुमको कोई रोक न पाया
हर मौसम ने करवट बदली पर
तुमको सदा अडिग ही पाया
मुझमें भी यही दृढ़ता भर दो
मुझको भी आलोकित कर दो
तुम ही सृष्टि के संचालक
तुम ही हो हम सबके पालक
अनुशासन का मंत्र सिखाते
नहीं किसी से तुम घबराते
वही अनुशासन मुझमें भर दो
मुझको भी आलोकित कर दो
जब भी तुम विश्राम को जाते
हम केवल अँधियारा पाते
अँधियारे को दूर भगाकर
प्राण शक्ति सबमें भरते हो
उसी ऊर्जा से मुझको भर दो
मुझको भी आलोकित कर दो
