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Sudha Singh 'vyaghr'

Others

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Sudha Singh 'vyaghr'

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जिजीविषा

जिजीविषा

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नव रूप, रंग, आस 

हरित मखमली गात

नव जिजीविषा के साथ 

मैं प्रस्फुटित हूँ आज


नव सूर्य उम्मीदों का 

है संग संग मेरे सदा

लड़ना है हर झंझा से 

खानी नहीं मुझे मात 


शुचि निर्मल तुहिन तन 

मधुरिम परिवेश से

निज बंधन 

यही एषणा हिय की अहो 

बढ़ता रहूँ दिन रात 


परमार्थ ही है लक्ष्य 

नहीं खिन्न, जो बनूँ भक्ष्य 

जीवन मिला सुनहरा 

उसे क्यों गवाऊँ तात


निज धर्म और कर्म से 

कर ना सकूँ प्रतिघात 

लड़ता हुआ परिवेश से 

सो प्रस्फुटित हूँ आज



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