Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

Sudha Singh 'vyaghr'

Classics

4.9  

Sudha Singh 'vyaghr'

Classics

माटी मेरे गाँव की

माटी मेरे गाँव की

1 min
1.2K


माटी मेरे गाँव की, मुझको रही पुकार।

क्यों मुझको तुम भूल गए, आ जाओ एक बार।। 


बूढ़ा पीपल बाँह पसारे।

अपलक तेरी राह निहारे।। 

अमराई कोयलिया बोले। 

कानों में मिसरी सी घोले।। 

ऐसी गाँव की माटी मेरी

जिसको तरसे संसार।। 


क्यों मुझको तुम भूल गए, आ जाओ एक बार।। 


स्नेहिल रस की धार यहाँ। 

मलयज की है बहार यहाँ।। 

नदिया की है निर्मल धारा। 

शीतल जल है सबसे प्यारा।। 

भोरे कुक्कुट बांग लगाए 

मिला सहज उपहार ।। 


क्यों मुझको तुम भूल गए, आ जाओ एक बार।। 


माँ अन्नपूर्णा यहाँ विराजें। 

ढोल मंजीरे मंदिर बाजे।। 

खलिहानों में रत्न पड़े हैं। 

हीरे - मोती खेत जड़े हैं।। 

मन की दौलत पास हमारे

है सुंदर व्यवहार। 


क्यों मुझको तुम भूल गए आ जाओ एक बार।।


पुकारती पगडंडियाँ।

इस ओर फिर कदम बढ़ा।। 

माटी को आके चूम लो। 

एक बार गाॅंव घूम लो।। 

हम अब भी अतिथि को पूजें

हैं ऐसे संस्कार।। 


क्यों मुझको तुम भूल गए, आ जाओ एक बार।।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics