निःशव्द
निःशव्द
आज निःशब्द हो जाऊं
दिल की बात पी जाऊं
बातें अनेकों उमङती मन भीतर
मन सागर में डुबा दूं उनको
कहीं भीतर गहराई पर छिपाकर
मोतियों को लू छिपा जग से
यह चांद बड़ा बेदर्दी है
क्या जिद ठान बैठा है
चंद्रिका भेजकर मुझपर
मन सागर में ज्वार लाता है
उफनते सागर को रोक लूं कैसे
ज्वार से बचा लूं मोती कैसे
दूर तट तक बिखर जाते हैं
मुझसे क्यों छूट जाते हैं
दूर गये मोती उठा लाऊं
छिपा लूं फिर से सीने में
मैं और मोती रहें केवल
इस दर्द भरे सीने में
क्यों न हो जाऊं निःशब्द फिर से
क्यों न पी जाऊं दिल के राज फिर से
आज निःशब्द हो जाऊं
दिल की बात पी जाऊं।
