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Sambardhana Dikshit

Classics Inspirational

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Sambardhana Dikshit

Classics Inspirational

नारी का हर रूप अनोखा है

नारी का हर रूप अनोखा है

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हंसी की किलकारी से घर गूंज उठता है,

नन्हें-नन्हें क़दमों से ये घर मेहक उठता है।

वो सबकी आंखों का तारा है,

बेटी से ही तो सबका घर पूरा है।।


छोटी है या बड़ी बहन है,

सब चुपचाप सहन करती है।

वो लड़ती भी है झगड़ती भी है,

दुलारने के साथ शासन भी करती है।


किसी एक की नहीं वो सबकी दोस्त है,

वह अपने में नहीं औरों में मस्त है।

सिर्फ बेटी नहीं वो अब बहू भी है,

सिर्फ मायके की नहीं, वो अब ससुराल की भी लक्ष्मी है।


धड़कन रुक-सी जाती है जब वह बेचैन है,

यह पति-पत्नी का बंधन और सुख-चैन है।

शायद रब ने यही रीत बनाई है,

दो जिस्म एक जान यही प्यार की गहराई है।


उसके बिन हर पल अधूरा है,

उसी से तो यह घर पूरा है।

कोई हो ना हो पर मां पास होती है,

हर गम को खुशियों में बदल देती है।


नारी मान है अभिमान है,

नारी का अपमान सृष्टि का अपमान है।

किसी ने भी क्या खूब कहा है-

"नारी का हर रूप अनोखा है।"


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