मुझे ठहरना सीखा दे
मुझे ठहरना सीखा दे
आज कर दिया हमने काशीदे से ये गुजारिश कि,
मुझे भी एक जगह ठहरकर ज़रा रुकना सीखा दे !
यूँ कि तकदीर हर बार मेरा चेहरा बदल देती है,
ठहरती हुई मेरी कोई एक ऐसी तस्वीर बना दे !
ले जा मुझे यूँ अपने आस्तीन में छुपाकर कर,
अक्सर ये आँखें नजर रखने को पहरा बदल देती है !
हस्ब-ए-हालात अब, ढलने लगे हैं हम जिस तरह,
सुनसान सी राहों पर ज़िन्दगी रास्ता बदल देती है !
चिरागों से कभी कोई गिला, नहीं किया हमने वान्या,
ये शमा तो उजालों के लिए खुद को ही जला सकती है !
