काफिला चला
काफिला चला
अब दो गुलों में यहां फासला बढ गया
दुश्मनी का बहुत सिलसिला बढ गया।
क्यों न हो मुश्किलों का यहां सामना
रहजनों का यहां काफला बढ गया।
अब मुनासिब नहीं इस नगर में गुजर
क़ातिलों का जहां हौहला बढ गया।
ज़ुल्म क्यों कर भला अब नहीं वो करे
मुनसिफों से जिसे राबता बढ गया।
हाथ में आ गया था मिरी मंजिलें
अब मिलन का मगर रास्ता बढ गया।
किस तरह अब भला मैं यकीं भी करूं
है जगत में बहुत नाखुदा बढ गया।
