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Dr Baman Chandra Dixit

Abstract Classics

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Dr Baman Chandra Dixit

Abstract Classics

मौसम और भी होते

मौसम और भी होते

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हर शाख को पत्ते नशीब नहीं होते

सिवाय पतझड मौसम और भी होते।


मगर ये कैसे मौसम मेरे मालिक

रफ्ता रफ्ता ये शाख बिखर जाते।


बेजान जिस्म में शेष कुछ तो है

स्नेह नेह मोह का संचार कर जाते।


घोंसला सा कुछ ऊंची टहनी पे

पनपती ज़िंदगी चूजें चहचहाते।


शुखि टहनियाँ रूठी ज़िंदगी लेकिं

ज़िन्दादिली की निशानी छोड़ जाते।


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