राधे राधे
राधे राधे
राधा पूछे मोहन से, "वृंदावन तो छोड़ चले ,
मो को ऐसे क्यों छोड़े तू ,बांध के धागे से परिणय की , मोको खुद से न जोड़े तू "
राधा रूप धरे मुड़े जो कृष्णा, अचंभित भयो तब राधा रानी,
देखा था तब काहू ने खुद को , बिन दर्पण बिन पानी
जब भी देखन मैं चलया खुद को "राधा", हर बार मैं तुमसा दिख जाऊं
परिणय बांधे है दो लोगों को, कह दे मैं दूजा कहाँ से लाऊं
बोली तब राधा कृष्णा से, दो शब्दों में तूने तो प्रेम ग्रंथ पढ़ाई है,
पुकारे सब तो को "राधे राधे", तूने अपनी ये कैसी पहचान बनाई है
खो कर तब ख़ुद को, राधा कृष्ण की परछाई बन जाती है
तभी तो जग में, राधा कृष्ण संग पूजी जाती हैं!!