शाम ए सुकून
शाम ए सुकून
ले चल जिंदगी जहां मिले थोड़ा सुकून मुझे
थोड़ा ही सही, कुछ दिन ही सही
पास नहीं तो दूर ही सही
ले चल जिंदगी इस शोर से दूर मुझे
हो न जहां
रिश्तों का कोई मायाजाल
मोह माया का न कोई जंजाल
बहुत जी लिया सबके लिए
सबके हिसाब से सबको खुश करते हुए
चल बीता लूं अब कुछ पल खुद के संग
थोड़ा घूमूँ थोड़ा नाचूं
थोड़ा मुसकुराऊँ खुद के लिए
थोड़ा रख लूं अपना ख्याल
थोड़ा सवारूं खुद को खुद ही के लिए
खो गई जो मैं खुद में ही कहीं उसे ढूंढ लाऊं ज़रा
ले लूं चुस्की थोड़ी वो गर्म चाय के प्याले की
जो अक्सर मेरा इंतजार करती रह जाती थी
थोड़ा खा लूं अपनी भी पसंद का
फिर चाहे हो वो ठंडा गोला या गोलगप्पा बिना झिझक के
उकेर दूं खुद के जज़्बात डायरी के पन्नों पे
जो रह गए कोरे, अधूरे, अनकहे
निभाते हुए रिश्ते सारे
बंद कर लूं कुछ पल ही सही मुठ्ठी में अपने
ये फिसलते लम्हे सारे
चल जी लूं कुछ पल सुकूं के
के फिर मैं रहूं न रहूं
ले चल जिंदगी मुझे उस सुकून की गली में
पास नहीं तो दूर ही सही
कुछ दिन कुछ पल ही सही
