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Alka Ranjan

Romance

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Alka Ranjan

Romance

प्रेम तो प्रेम है

प्रेम तो प्रेम है

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मन में किसी की छवि आकृत हो

उसे ही प्रेम कहते हैं न,

सुख हो दुख हो 

ख्याल जिसका हो 

उसे ही प्रेम कहते हैं न,

हो गिले शिकवे हजार

पर जब जब झुके सर रब के आगे तो 

दुआ में शामिल जो हो

उसे ही प्रेम कहते हैं न,

भर जाए जिसे खुश देख आंखों में पानी 

उसे ही प्रेम कहते है न,

खुद को खो कर दूजे को पा लेना ही 

प्रेम है न ,

प्रेम की तो परिभाषा कई

रूप कई


प्रेम जो था पार्वती के लिए तपस्या

तो शिव के लिए प्रतीक्षा

राधा के लिए विरह

तो कृष्ण के लिए त्याग

तो मीरा के लिए मिलन की आस

पावन जो गंगा पानी जैसा

एहसास धूप दान जैसा

रिश्ता ईश्वर भक्त जैसा।


प्रेम देखे न रंग रूप

न जात पात,न धर्म की दीवार

न भाषा न उम्र की सीमा

न देशों की बीच का पहरा

प्रेम तो बस प्रेम है

दो दिलों का मिलन गहरा।



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