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Alka Ranjan

Abstract

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Alka Ranjan

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प्रेम की अभिलाषा

प्रेम की अभिलाषा

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तुम्हें क्या पता कि कितने प्यार से खाना बनाती हूं

पर जाने क्यों तुम्हें नींबू-मिर्च,नमक-मसाला

गलत लग जाता है जहां मुझे प्यार नजर आता है

 तुमको सिर्फ कम नजर आता है


 घर से निकलते हो तो कब आओगे यह फिक्र सताता है 

पर तुमको तुम्हारा ईमेल्स मीटिंग कॉन्फ्रेंस याद आता है

जहां मुझे परवाह की फुहार सताती है

तुम्हे सिर्फ काम नज़र आता है


घर आते हो तो जी करता है तुमसे ढेर सारी बातें करु

 पर तुम्हें मी टाइम और नेटफ्लिक्स याद आता है 

जहां मेरी खामोशियां भी तुम ही से बातें करती है 

वहां तुम पास होकर भी कहां करते कोई बातें हो 


सज धज सोलह शृंगार कर

हाथों में मेंहदी से तुम्हारा नाम लिख

होठों पर तुम्हारे लिए प्यार लिए 

करती तीज त्यौहार हूं,अमर सुहाग के लिए

पर तुम्हें सब फिजूल और दकियानूसी नजर आता है

जहां मुझे इश्क,वहां तुम्हें क्यों अंधविश्वास नजर आता है


मेरे लिए जीवनसाथी का अर्थ मन मीत, पल पल का साथी 

पर तुम्हारे लिए शायद पत्नी केवल अर्धांगिनी,

बस आधा अंग ही तो है

बिन भावना जो हो जाएं हर बार तुम्हारी

जहां मेरी आस मन का मिलन 

वहां तुम्हारे लिए जरूरी बस तन का मिलन


जहां सागर बन तुम पाते मुझको

वहां नदी बन मैं खोती जाती कतरा कतरा खुद को।


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