कहां छुपा कर रखूं तुझे मेरी लाडली
कहां छुपा कर रखूं तुझे मेरी लाडली
कहां छुपा कर रखूं तुझे मेरी लाडली
है देश सुरक्षित नहीं मेरी रानी,
यूपी हो या एमपी, मुंबई हो या दिल्ली,
हर जगह छा रहा प्रकोप पुरुष प्रधान का
बन बैठे है जो शिकारी, करेंगे तेरा शिकार वो
छूना चाहेंगे, समझ अबला बिचारी तुझको
तन मन में तेरे करेंगे वार वो
मिट्टी मिट्टी कर देंगे तेरा मान वो
कर देंगे तुझको भी अपवित्र वो
जैसे आज बहती गंगा का पानी हो,
कहां छुपा कर रखूं तुझे मेरी लाडली
सोच रही हर मां संग भारत मां भी यही
उड़ना चाहे तू मेरी परी
पर जानूं मैं काटेंगे तेरे पंख वो
खिलना चाहे तू मेरी नन्ही कली
पर पुरुषत्व के अत्याचार से,
विश्वास घात के थपेड़ों से
मुरझायेंगे कोमल अंग तेरे
दूषित है समाज बड़ा,
हर पल चलना होगा तुझे कदम संभाल,
मासूम है, नादान है तू
चेहरे के पीछे छिपा चेहरा डरा जायेगा तुझे
छोटी है, भोली है तू,
अपनो में छिपे है भेड़िए कई, कहां जान पाएगी तू
सांवली सलोनी तू
रंग रूप ही तेरा एक दिन हां दुश्मन बन जायेगा
हो जायेगी हाय खुद से जुदा तू
वजूद तेरा कहीं खो जायेगा
यूं ही अधूरी सी होगी तेरी दास्तान
स्त्री रूप की कब कहां कोई पहचान।
मां, बेटी, बहन, पत्नी,
रूप और किरदार होंगे तेरे कई सारे
तू जीएगी सब के लिए
तू वारेगी अपनी सारी खुशियां सब पर
पर कोई न होगा तेरा अपना,
मतलबी है रिश्ते सारे
दोगला है समाज ये
पूजी जायेगी तू मंदिरों में
कभी दुर्गा तो कभी काली रूप में
पर वास्तविक में सताएगी जायेगी,
कभी रुलाई, तो कभी लूटी जायेगी,
कभी अपनो तो कभी गैरों से,
न आयेंगे गोविंद ना श्याम कोई
रह जायेगी तू बस अकेली।
चल छुपा कर रखूं तुझे मेरी लाडली,
है देश सुरक्षित नहीं मेरी रानी।
