स्याह परतों के नीचे
स्याह परतों के नीचे


स्याह परतों के नीचे, सत्य कब तक छुपेगा?
धूल हिय से हटा, सबकुछ निर्मल दिखेगा
दीपक हमारा बुझाकर न सोचो,
तुम्हारा मकां ज्यादा रौशन दिखेगा
लड़खड़ाते हुओं को उठाकर दिखाओ,
उनके आशीष से दिन तुम्हारा बनेगा
पंथ में तुम किसी के न कंटक बिछाओ,
चले उस पंथ तुम जो, तुम्हें वह चुभेगा
द्वेष के भावों से कुछ न हासिल 'सखे',
रखें सद्भाव मन में तो जीवन खिलेगा
फेंक कर कीच सूरज पे भ्रम में न रहना,
अब न चमकेगा वह, न दोबारा उगेगा
दिखे गर जो खामी, दिखा दें हमें,
सुधरने का हमको भी अवसर मिलेगा!!