नारी एक रूप अनेक
नारी एक रूप अनेक
तू जननी है तू करुणा है तू ही शील तू सरला
महिषासुर मर्दनी भी तू फिर क्यों है तू अबला
सौंदर्य की तू प्रतिमूर्ति तेरे कदमों में शौर्य है बिछता
मोहिनी रूप से सबको छकाये ऐसा हुस्न बिखरता
त्याग की देवी, धीरज धरणी, संयम का दूजा नाम
लाज की चादर ओढ़ चले तू दूर रहे तुझसे "काम"
चरित्र का गहना पहन करे मुस्कान से तू श्रंगार
नैनों से ही कत्ल करे और "चाल" से जनसंहार
बल, बुद्धि, विद्या की देवी ममता की है खान
तेरी महिमा का मैं "अदना" कैसे करूं बखान
राजनीति से घर गृहस्थी तक तू ही तू है छाई
पुरुष को पूर्ण बनाने को ही तू इस जग में आई।
