क्योंकि तू स्त्री है
क्योंकि तू स्त्री है
हर रोज़ टूट कर बिखरती है,
फिर खुद से अपने को बटोरती है,
और ये समझाती है, कि तुझे नहीं टूटना।
तुझे तो संवारना है, जीवन अपनों का।
तेरे सपने टूटे तो टूटे सही,
तेरे अपने छूटे तो छूटे सही
पर तुझे नहीं टूटना ......
गर टूट भी गई तो फिर जुड़ना है, खड़े होना है,
अपने परिवार के लिए, अपने बच्चों के भविष्य के लिए।
क्योंकि तू स्त्री है.....
इक बेटी, इक बहन, इक बहू , इक पत्नी, इक मां.....
क्योंकि तू स्त्री है.....
तू टूटेगी, तू रूठेगी, तू रोएगी...
तू फिर से खुद को बटोरती हुई ...
मुस्कुराएगी, खिलखिलाएगी, गुनगुनाएगी
नाचेगी, गायेगी.... सब कुछ भुला
फिर से जीवन को संवारने के लिए तैयार हो जायेगी।
क्योंकि तू स्त्री है.....
तू अदभुत है, तू अद्वितीय है, तू असीमित है।
तू सबल है तू कोमल है, तू सशक्त है, तू ममतामई है,
क्योंकि तू स्त्री है.....
