बयान-ए-हाल
बयान-ए-हाल
न मिलते, तो कहानी अधूरी न होती,
क्यों न तेरे ख़याल को ये ख़याल दूँ ?
है तो दोनों ही तेरे अंदर, फिर भी सोचा,
तेरे गुरुर को तेरी सादगी की मिसाल दूँ।
हर जवाब में तेरे एक सवाल दिखा है,
क्यों न इस जवाब पे, फिर एक सवाल दूँ ?
करीब से तस्वीर को देख न सके तुम,
बरसों से उस पर जमी ये गर्द निकाल दूँ।
फैसला वक़्त का था, रहा है, और रहेगा,
जब हक़ ही तेरा नहीं, तुझे क्यों मलाल दूँ ?
मुझे अपने दिल पे भरोसा आज भी है,
तू मेरा खुदा नहीं, जो बयान-ए-हाल दूँ |