नूर की चादर
नूर की चादर
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यादों की लहरें टकराती है दिल पे,
एक नूर की चादर ओढ़े ये रात है।
एक टुटा हुआ लम्हा, कुछ छूटे हुए शब्द,
इन्ही की तलाश में चल पड़ा है वक़्त।
अक्सर यूँ गिरते, संभलते हैं हम,
क्या खूब नसीहत देती है ज़िन्दगी।
ज़ीने से ही ज़िंदा नहीं होता कोई,
एक मुर्दे ने ऐसा कहा था कभी।
अब ना कोई डर, न ही दर्द है,
एक सुकून है, जो बेसब्र है।
खड़े थे कभी जहाँ हम हार के,
खड़े हैं वहीँ अभी उस अकाम पे।
पर आज इस पल में अलग कुछ बात है,
एक नूर की चादर ओढ़े ये रात है।