अक्स
अक्स
आज एक भिखारी से मुलाक़ात हुई,
फटे पुराने कपड़ो में, हाथ में कटोरा लिए,
फूटपाथ में बैठा, अपने ही धुन में डूबा था वो,
उन झुर्रियों भरे चेहरे पे, मुस्कान लिए।
लोग आते, जाते कुछ पैसे डाल जाते,
न परवाह, न उम्मीद, कुछ पाने के लिए,
बड़ी मुद्दत से ऐसी हसी, न देखि थी हमने,
आखरी बार जब ऐसे हसे थे हम वो पल याद किये।
सब कुछ तो है, पर वो खुसी क्यों नहीं ?
तरसते क्यूँ है ज़िंदगी भर ग़म का खज़ाना लिए,
कभी पाने कि चाह, कभी खोने का डर,
कभी देखा नहीं, एक एक पल गुज़रते हुए।
जब कभी यूँ थक के रुके, तो सोचने लगे,
बहुत दूर आ गए यूँ चलते हुए,
जब अकेले में आईने से रुबरु हुए,
अक्स ने कहा, "बड़ी देर हुई हमें मिले हुए।
