सपना
सपना
एक अधूरा सपना है,
फिर आज रात देखना है,
एक डर के साथ,
कि कहीं टूट न जाए,
बड़ी सिद्दत से पाला है इसे,
एक नादान सपना।
रोज रात चाँद के तकिये पे,
सर टिका के देखते हैं,
तारों के भीड़ में छुपता हुआ,
जब बादल करवट लेता है,
बस एक रात में सिमटा हुआ,
एक अधूरा सपना है।
परी के जैसी मासूम है,
और पानी के जैसा साफ़,
कभी बच्चे कि तरह जिद्दी,
तो कभी किस्मत कि तरह नाराज़,
बंद आँखों के दरारों से,
हर रात ये सपना झाँकता है।
शायद यही वो सपना है,
जो पूरा न हो तो अच्छा है,
एक सुकून है इसके दामन में,
जैसे माँ कि गोद में मिलता है,
टूटे रोशनदानों-सा,
ये मेरा अधूरा सपना है।
