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Habib Manzer

Others Romance

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Habib Manzer

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बदल गया है ज़माना ऐसे

बदल गया है ज़माना ऐसे

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बदल गया है जमाना ऐसे,

वफा की चाहत नहीं किसी को,

सितम ज़माने का बढ़ गया है,

वफा की हसरत नहीं किसी को।


किसी ने चाहत भूला दिया है,

हसीन लम्हा ना याद उसको,

कहुं मैं कैसे कसम निभाओ,

कसम की आदत नहीं किसी को।


जगह बदलना है रोज़ उनका,

कोई भी रिश्ता ना याद उनको,

निभाना रिश्ता जन्म जन्म का,

ना याद रहता कभी किसी को।


कही भी जाये तुम्हें बूलाये,

हसीन सपने तुम्हें दिखाये

यही है आदत हमारे दिलकी,

मगर यकीन अब नहीं किसी को।


मैं क्या बताऊं सनम की बातें,

हूजुर सब मेरा जानता है,

नशा मूहब्बत है दिलमे मेरे,

मगर मूहब्बत नहीं किसी को।


चलो जला दें तमाम यादें,

हसीन लम्हो को हम भूला दें,

है दिल दिवाना तड़प रहा है,

फिक्र दिवाने की ना किसी को।


हबीब तुमने सवाल पूछा,

बताओ चाहत का माज़रा क्या,

समझ रहा है ज़माना हालत,

मगर यकीन अब नहीं किसी को।


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