मेरी चाहत सनम नहीं बदली
मेरी चाहत सनम नहीं बदली
आह दिल से वफा में जब निकली
मेरी चाहत सनम नहीं बदली
सोचता हूं मैं जिसके बारे में
संगदिल वो मगर नहीं बदली
दिल में जिसको मैं क़ैद करता हूं
क्यों नज़र की ज़ुबान नहीं बदली
आज फुर्सत मिली तो कह दूँगा
कितनी खुदगर्ज तुम सनम निकली
ज़ेहन में एक हसीन परी है मेरे
रुह की ताज़गी सनम निकली
एक मंज़र सनम दीवाना है
वजह ग़म भी मेरी सनम निकली
बस यही ग़म मुझे सताती है
जीने की वजह जानेमन निकली
देख लो तुम भी हाल ए दिल मेरा
जानेमन मेरी हमसुख़न निकली
दर्द दिल मेरा अब बढ़ा ऐसे
हौले-हौले से आज दम निकली