STORYMIRROR

Habib Manzer

Abstract

4  

Habib Manzer

Abstract

कुछ याद है अब तक सीने में

कुछ याद है अब तक सीने में

1 min
337

क्यों आग लगी है सीने में

क्यों दर्द उठा है सीने में

एक लौ है ज़ेहन में अब मेंरे 

कुछ याद है अबतक सीने में


एक राज़ छुपाना मैं चाहा

कुछ बात बताना मैं चाहा

कुछ ख्वाब मुझे सोने ना दे

लम्हात हसीन हैं सीने में


एक सुबह उदासी ले आई

एक शाम घटा फिर से छाई

उम्मीद अभी कुछ ज़िंदा है

नग़मात मोहब्बत सीने में


एक ख्वाब अधूरा है मेरा

एक फिक्र ज़ेहन में है मेरे

एक याद कसम दिलको मेरे

सदमात मोहब्बत सीने में


एक चाँद कभी बादल में था

एक चाँद हसीन मेंरे दिलमें था

कुछ वक्त बिताया साथ तेरे

जज़्बात मोहब्बत सीने में!


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract