ग़म मुझे क्यों दिया
ग़म मुझे क्यों दिया
पूछकर हाल दिल
वो चला क्यों गया
छीन कर हर खुशी
ग़म मुझे क्यों दिया
पूछता मै रहा
क्या ख़ता है मेरी
कुछ भी बोले बिना
रूठ कर क्यों गया
मै भी खामूश था
उसने बोला नही
तर्क रिश्ता किया
फिर चला क्यों गया
हक की बातें किया
ज़ुल्म दिल पर किया
झूठ बोले नही
सच छुपा क्यों लिया
किसको अपना कहुँ
याद किसको करूँ
दिल से मजबूर था
कुछ कहे बिन गया
दिल का सौदा किया
फिर कसम खा लिया
दिल का साथी कहा
फिर सनम क्यों गया
हाथ पकड़ा कभी
फिर छुडाने लगा
फिर लगाया गले
रूह मे बस गया
मंज़िलो की तरफ
राह खुद चुन लिया
वक्त के साथ मे
फिर सुलह कर लिया।