जनता खामोश है
जनता खामोश है


खेल रत्न गिर पड़े
गिरे नहीं...
गिराए गए!
पाने को इंसाफ मेडल
सड़कों पर उतरे थे
हां इस देश में
बने इज्जत पर ख़तरे थे
सुनवाई नहीं हुई
अपराधी को सजा भी
आखिरी दम तक लड़ों
न खोना होश है।
जनता खामोश है।।
तानाशाही आखिर
कब तक खैर मनायेगी
देखना जल्लादों....
तुम्हारी कश्तियां डूब जाएगी।
कब तक बचोगे
कब तक भागोगे
तुफान में तुमसे ज्यादा जोश है।
जनता खामोश है।।