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Rohtash Verma ' मुसाफ़िर '

Drama Action Inspirational

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Rohtash Verma ' मुसाफ़िर '

Drama Action Inspirational

आस्था से खिलवाड़

आस्था से खिलवाड़

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हे राम !

पुरुषोत्तम राम

यहां ......

हाय ! कैसा मनुष्य हो गया

अहंकार, अभिमान में चूर

किसी अंधकार में खो गया 

कहां गए वो धर्मज्ञ ?


कहां वो शिक्षित प्रजा है

सिनेमा को समझा था एक अच्छा स्तंभ

किन्तु यहां झूठ का पर्दा है

कैसी रामायण है ये ' आदिपुरुष '

भावनाओं का कर दिया कबाड़ है।

ये हमारी आस्था से खिलवाड़ है।।


सभ्य यहां कोई पात्र नहीं

सभ्य भाषा को तोड़ दिया

मजाक बनाया हद से ज्यादा,

कलयुग में कथा जो जोड़ दिया

माता सिया के वस्त्र बदले

हनुमत का भी अपमान किया


कैसा है ये रावण इसमें,

अज्ञानता का सम्मान किया

यथार्थ गवाह था जो इतिहास

उपहास उड़ा बनाया जुगाड़ है।

ये हमारी आस्था से खिलवाड़ है ।।


धीरे धीरे पतन करते

पीठ पीछे कुछ जतन करते

जो विश्वगुरु था भारत

उसे मुर्खता का वतन करते

जनता भी तो खामोश है

शान्त पड़ा उसका आक्रोश है


जिसका फायदा ये लोग उठाते हैं

मर्यादा को तोड़ मरोड़ कर

रावण को नहीं राम जलाते हैं

उठो ! जागो ! ऐ वतन वालो

यहां संस्कृति हो रही चीर-फाड़ है।

ये हमारी आस्था से खिलवाड़ है।।


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