मुर्ग़ों की लड़ाई
मुर्ग़ों की लड़ाई
मुर्ग़ों की लड़ाई है प्राचीन दर्शक खेल,
है जो खूनी खेल मुर्ग़ों का,
चला आ रहा खेल यह मनोरंजन के लिये,
सिंधु घाटी की सभ्यता से,
खिलाते हैं मुर्ग़ों को मानव यह खेल
की जाती है विशेष नस़्ल तैयार मुर्ग़ों की,
कहलाते नर-मादा इस नस्ल के ‘गे़म फ़ाउल’,
किया जाता है इन्हें प्रशिक्षित एक वर्ष,
करने को वृद्धि इनकी ताक़त व आन्तरिक बल,
रहते निरन्तर प्रयासरत,
है मुर्ग़ों की लड़ाई से सम्बन्धित सकुक्कुट शास्त्र,
करता निर्धारित जो आहार इन पक्षियों का,
हैं शामिल जिसमें बादाम, काजू, पिस्ता व मांस।
खेलने वाले खूनी खेल मुर्ग़े कहलाते गेम कॉक,
बंधे होते हैं चाकू व ब्लेड इनके पाँवों में,
छोड़ दिया जाता है इन्हें कॉकपिट में युद्ध के लिये,
हो जाते घायल अत्यधिक या खो बैठते जान हाथ से,
करते करते मनोरंजन मनुष्य जाति का।
तथाकथित मनोरंजन के लिये अपने मानव,
समझ बेज़ुबान मुर्ग़ों का कराते खूनी युद्ध।
क्या है मानव वास्तव में बुद्धिजीवी…..?
समझते हैं पक्षी भाषा प्यार की,
करते हैं प्रतिदान भी प्यार का,
नहीं बोल सकते ये भाषा मानव की,
परन्तु होती है इनकी अपनी बोली…,
करते ऐलान सुबह का बाँग से अपनी,
हैं कैसे फिर बोलो है ये बेज़ुबान….?
हाँ हैं ये शक्तिहीन मनव के आगे,
क्या है हिम्मत मानव में खेलने का,
खेल खूनी संग शेर के…….?
