मन तो व्यथित होता है राधे..!
मन तो व्यथित होता है राधे..!
तुम ठीक कहती हो,
युद्ध किसी समस्या का हल नहीं
युद्ध को टाला जा सकता था
हजारो लाखों ज़िंदगी को बचाया जा सकता था
पर...
जब समझ पर परदा पड़ा हो
शांति प्रस्ताव साजिश लगे
दुरक्सरियों का साम्राज्य चरम पर हो,
प्रेम की भाषा षड्यंत्र की गंध लगे
तब युद्ध जरुरी होता है
ह्रदय में रहने वाले को कष्ट ना हो
इसलिए उसे मुक्त करना जरूरी होता है
जीवन केवल वंशी की मधुर धुन पर नहीं थिरकती
संतुलन जरूरी है इसलिए सुदर्शन धारण करना पड़ता है
और भी बहुत से आनंदोत्सव का त्याग कर माखन मिश्री छोड़ कर
गीता का ज्ञान भी देना ही पड़ता है
फिर भी
मन तो व्यथित होता ही है ना राधे...!
