कुण्डलिया
कुण्डलिया
मानव सारे बदल गए , मानवता को भूल।
अवसर वादी हो गए , मार रहे हैं शूल ।
मार रहे हैं शूल , सृष्टि उजड़ी है जाती।
करते हैं बर्बाद, मिली ईश्वर से थाती।
कहती सरला आज , बना मानव ही दानव।
ईश्वर का यह बाग , नोंच खाता है मानव ।।
