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डाॅ सरला सिंह "स्निग्धा"

Tragedy

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डाॅ सरला सिंह "स्निग्धा"

Tragedy

कुण्डलिया

कुण्डलिया

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 मानव सारे बदल गए , मानवता को भूल।

 अवसर वादी हो गए , मार रहे हैं शूल ।

 मार रहे हैं शूल , सृष्टि उजड़ी है जाती।

 करते हैं बर्बाद, मिली ईश्वर से थाती।

 कहती सरला आज , बना मानव ही दानव।

 ईश्वर का यह बाग , नोंच खाता है मानव ।।


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