3 कुण्डलियां
3 कुण्डलियां
कुण्डलिया
1-
रघुपति करते हैं दया, जो भजता है नाम।
होती जब उनकी कृपा, बनते सारे काम।
बनते सारे काम , हटें सब पथ के काँटे।
होती पूरी आस, राम जी सुख जब बाँटे।
सिर पर अपना हाथ, धरें सबके सीतापति।
दुख सबका हो दूर, दया कर दो हे रघुपति।
2-
पावन उनका नाम है, कहते उनको राम।
आता है जो भी शरण, बनता उसका काम।
बनता उसका काम , सभी के वही सहारे।
भव बन्धन कर दूर , वही फिर पार उतारें।
कौशल्या सुत राम, नाम लगता मनभावन।
सिर पर रख दो हाथ, बने यह जीवन पावन।
3-
हनुमत के प्रिय राम है, जीवन के आधार।
भटक रही इस जगत में, अब तो कर दो पार।
अब तो कर दो पार , काट दो सारी माया।
जाता खाली हाथ, कहाँ कुछ कोई पाया।
राम नाम बस सत्य, यही कहता है जनमत।
सबके प्रियवर राम, राम के प्रिय हैं हनुमत।