कुण्डलिया
कुण्डलिया
पाकर जिनको थी कभी, धन्य हुआ यह देश।
कहाँ गए वो लोग हैं , मिले नहीं सन्देश ।
मिले नहीं सन्देश , सभी उलझे से लगते ।
त्याग धर्म ईमान , झूठ के पीछे भगते ।
कहती सरला आज, बने सब माया चाकर।
रोती धरती आज , दुष्ट जन ऐसे पाकर ।।
पाकर जिनको थी कभी, धन्य हुआ यह देश।
कहाँ गए वो लोग हैं , मिले नहीं सन्देश ।
मिले नहीं सन्देश , सभी उलझे से लगते ।
त्याग धर्म ईमान , झूठ के पीछे भगते ।
कहती सरला आज, बने सब माया चाकर।
रोती धरती आज , दुष्ट जन ऐसे पाकर ।।