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डाॅ सरला सिंह "स्निग्धा"

Tragedy

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डाॅ सरला सिंह "स्निग्धा"

Tragedy

कुण्डलिया

कुण्डलिया

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 पाकर जिनको थी कभी, धन्य हुआ यह देश। 

 कहाँ गए वो लोग हैं , मिले नहीं सन्देश । 

 मिले नहीं सन्देश , सभी उलझे से लगते ।

 त्याग धर्म ईमान , झूठ के पीछे भगते । 

 कहती सरला आज, बने सब माया चाकर।

 रोती धरती आज , दुष्ट जन ऐसे पाकर ।।


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