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SHRUTI SINGH

Tragedy

3.9  

SHRUTI SINGH

Tragedy

परिभाषा : बेटियाें की

परिभाषा : बेटियाें की

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230


दर्जनों विश्राम करतीं हैं यहां पर

आंकड़ा ये शमशान का बताती हूं

ढक लो भले कानों को श्रुति

पर आज चीख कर ये विपदा

सुनाती हूं


धन्य है! ये धरा जो इतना झेल पाती है

जन्म के दिन से ही इन पर दुनिया,

बोलियां लगाती है

मूल्य की सीमा यहां चमड़ी के रंग से

घटती बढ़ती और बढ़ती जाती है


चूड़ी की कीमत यहां लाखों तक जाती है

और यूं ही एक दिन,

इस विनिमय में ये बिक जाती है

मांग की लालिमा का परिणाम यह आता है


इन्हें बहुमूल्य कह और मूल्य मांगा जाता है..

लिख-लिख कर पत्रों पर मायके तगादा आता है

और आंसूओं से तीज त्यौहार मनाया जाता है

यूं ही चलता है ये पहिया चंद महीनों तक,

फिर इन्हें चूल्हे की लकड़ी सा रसोई में

राख कर दिया जाता है


यही है परिभाषा इनकी...

और....

इन्हीं अभागिनो को आज-कल

"बेटियां" कहा जाता है.....


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