परिभाषा : बेटियाें की
परिभाषा : बेटियाें की
दर्जनों विश्राम करतीं हैं यहां पर
आंकड़ा ये शमशान का बताती हूं
ढक लो भले कानों को श्रुति
पर आज चीख कर ये विपदा
सुनाती हूं
धन्य है! ये धरा जो इतना झेल पाती है
जन्म के दिन से ही इन पर दुनिया,
बोलियां लगाती है
मूल्य की सीमा यहां चमड़ी के रंग से
घटती बढ़ती और बढ़ती जाती है
चूड़ी की कीमत यहां लाखों तक जाती है
और यूं ही एक दिन,
इस विनिमय में ये बिक जाती है
मांग की लालिमा का परिणाम यह आता है
इन्हें बहुमूल्य कह और मूल्य मांगा जाता है..
लिख-लिख कर पत्रों पर मायके तगादा आता है
और आंसूओं से तीज त्यौहार मनाया जाता है
यूं ही चलता है ये पहिया चंद महीनों तक,
फिर इन्हें चूल्हे की लकड़ी सा रसोई में
राख कर दिया जाता है
यही है परिभाषा इनकी...
और....
इन्हीं अभागिनो को आज-कल
"बेटियां" कहा जाता है.....