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SHRUTI SINGH

Abstract

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SHRUTI SINGH

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वो अब जा रहें हैं गांव ..

वो अब जा रहें हैं गांव ..

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छोड़ आए थे जो पुरखों की अमानत

वो अब जा रहें हैं गांव देखो

जल रहे पसीने सड़क पर

चल रहें जख्मी पांव देखो


नदी का कहा बदला कोई मिजाज देखो

पर उदास बैठी यहां नाव देखो

वो अब जा रहें हैं गांव देखो


तोड ना पाई जिन्हें चुनौतियां जिन्दगी की

हो रहे उनके हौसलों में घाव देखो

पेड़ लगाते थे जो नन्हें हाथ

होकर बड़े शहर में खोजते है छांव देखो

वो अब जा रहें हैं गांव देखो


रास्ता कितना बड़ा है क्या पता ?

चल पड़े जान की क्या है फ़िक्र

वो मर रहे हैं घुट रहें हैं

हां! हो तो रहा है अखबारों में ज़िक्र


चुप सी नज़रों से टप टप होता रिसाव देखो

वो अब जा रहें हैं गांव देखो...


इंसान ही अब है कहा इंसान देखो

आज के इंसान की इंसानियत देखो

ज़रूरत से बड़ा घर घर से बडी जरूरत

इस शहर की ये खासियत देखो


जिस ने बनाया सपनों का

घर लाखों के लिए "श्रुति"

वो हो गया बेघर आज देखो


जल रहे पसीने सड़क पर

चल रह जख्मी पांव देखो

वो अब जा रहे हैं गांव देखो।


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