असह्य वेदना
असह्य वेदना
प्रकृति क्यों,आज चुप है?
सहज ही,रो नहीं देती?
इन गरीबों की तपन को,
भिगो कुछ,क्यों नहीं देती?
थकन से चूर,भूखा तन,
सफर पे आज निकला है,
मजबूर,मजदूरों की दूरी,
क्यों राहें,ढो नहीं देती?
आंसू से ये,भींगा तन,
पड़े पांवों में,बस छाले,
जरा बादल बहा आंसू,
क्यों नरमी,बो नहीं देती?
मीलों फासला चलता रहा,
मजदूर का कूनबा सतत,
भूखे मां को,कोई मां,
अब रोटी,क्यों नहीं देती?
पड़ा असहाय बच्चों का,
ये जीवन आज मुश्किल में,
कोई गोंदी में रख मासूमों को,
सहला ही क्यों,नहीं देती?
जीवन भर सदा जिन्होने,
सबका बोझ ढोया है,
उनकी दर्द को बढकर,सभी,
उठा हीं क्यों नहीं लेते,
कथा जब इन गरीबों की,
लिखी है आंसुओं से हीं,
मेरे साथ,मिलकरके,
प्रकृति क्यों,रो नहीं लेती??