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Vinay Singh

Abstract Action Classics

4  

Vinay Singh

Abstract Action Classics

शहर

शहर

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जहाँ भी मेरी दृष्टि को,

मिट्टी का अभाव दीखता है, 

ठीक वहीं से शुरू, 

शहर का प्रभाव दीखता है, 

चीथडों मे लिपटा पडा, 


फुटपाथ की गंदी जगह, 

भूख से व्याकुल, 

जब पेट कोई चीखता है, 

ठीक वहीं से शुरू, 

शहर का प्रभाव दीखता है, 


एक अबोध बच्चा कोई, 

अखबार का गट्ठर लिए, 

दौडता गाडी के पीछे, 

नंगे पाँव ले लो चीखता है, 

ठीक वहीं से शुरू, 

शहर का प्रभाव दीखता है, 


संकुचित सिमटी हुई, 

जीवित लाश अधनंगी हुई, 

जब कुदृष्टि से घायल, 

असहाय हाय चीखती है, 

ठीक वहीं से शुरु

शहर का प्रभाव दीखता है। 


पात्र में कोई जल लिए, 

मन में भक्ति को अविचल लिए, 

शांति मय स्वभाव से, 

जब वृद्ध कोई दीखता है, 

ठीक वही से शुरु

शहर का प्रभाव दीखता है।


भीड के अंबार में, 

विप्लव भरे इस ज्वार में, 

मरीज चलने में असहाय, 

भईया राह दे दो,चीखता है, 

ठीक वहीं से शुरु

शहर का प्रभाव दीखता है।


गाडियों की भीड़ में, 

राह में ठोकर वो खाता, 

स्वांस लेने की तडप में, 

प्राण आतुर चीखता है, 

ठीक वहीं से शुरु

शहर का प्रभाव दीखता है।


स्वर्ण की जंजीर बांधे, 

पुष्ट स्वान हाथ साजे, 

कोई विशिष्ट सख्श, 

जब अहंकार युक्त दीखता है, 

ठीक वहीं से शुरु

शहर का प्रभाव दीखता है।


स्टाइलिश कपडों में जब, 

बदन अधनंगा किये, 

टाप की दिग्भ्रमित आहें, 

ध्यान को जब खिंचता है, 

ठीक वहीं से शुरु

शहर का प्रभाव दीखता है।


भीड के इस भंवर में, 

घायल लाश अधमरी पडी, 

दर्द और असमर्थता में

सहयोग दे दो चीखता है, 

ठीक वहीं से शुरू, 

शहर का प्रभाव दीखता है, 

जहाँ भी मेरी दृष्टि को, 

मिट्टी का अभाव दीखता है,

ठीक वहीं से शुरु,

शहर का प्रभाव दीखता है।


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