स्वयं का भार
स्वयं का भार
है विघ्न से, मानव घिरा,
मनुजता पर, भार है,
द्वंद्व अपरंपार है,
जीत है, या हार है,
है कहाँ, ये देख पाता,
है विघ्न से, मानव घिरा,
प्रकाश मय, संसार है,
अंधकार से ही, प्यार है,
कर्म सब करता हुआ,
दोष देता है, विधाता,
है विघ्न से, मानव घिरा,
ढूंढता प्राकार में,
नहीं स्वयं के, व्यवहार में,
जीतने की होड़ में,
मानव सदा ही, हार जाता,
है विघ्न से, मानव घिरा,
संसार से, लड़ता हुआ,
निज कर्म भी, करता हुआ,
स्वयं में ही, स्वयं को,
है कहाँ, ये देख पाता,
है विघ्न से, मानव घिरा,
जो ढूँढता, संसार में,
स्वयं ही, वह सार है,
ज्ञान की, गाथा बताता,
है कहाँ, पर समझ पाता,
है विघ्न से, मानव घिरा,
मार्ग सब, अवरुद्ध करता,
कंटकों पर, पैर धरता,
चेतना परिपूर्ण है, पर,
है कहाँ, ये देख पाता,
है विघ्न से, मानव घिरा,
सत्य है यह सार है,
मनुज ही, अवतार है,
पर दूसरों से, जीतकर,
स्वयं से है, हार जाता,
है विघ्न से, मानव घिरा,
जीत ले, आक्रांत हो
पर्वत, पयोधि शांत को,
पर, प्राण के विस्तार को,
है कहाँ, ये देख पाता,
है विघ्न से, मानव घिरा।।