नव-पल्लव
नव-पल्लव
1 min
385
कितना पावन रिश्ता है
वृद्ध और बचपन का।
जैसे धरती पर होता है
पतझड और सावन का।
एक धरा के सुख-दुख का
पावन साक्षी होता है।
एक उसे पाने की खातिर,
जोर जोर से रोता है।
थककर एक धरा पर बैठा
जाने की तैयारी में।
एक सहज हो मगन झूमता
फूलों जैसी क्यारी में।
जीवन चक्र मुझे लगता है
खुद को हीं दोहराता है।
अपने हीं जीवन वृत्तों में
फिर फिर के वह आता है।