बिखरे फूल
बिखरे फूल
प्रकृति सरल थी..
तत्व तरल वो गहती जाती।
अश्रु कणों के सिंचन में
अपने कलरव-मय बहती जाती।
काल वहाँ साहस से सहसा
पांव दबाये आ पहुंचा।
आज शेष जो रहा धरा पर
शायद कोई नहीं बचा ?
लक्ष्य मेरा है बडा
मुझे हारने की जिद है।
स्वयं से हीं स्वयं को
ललकारने की जिद है।
रोज सबलों को यहाँ पर
देखता मरते हुये?
उस मौत को उसके हीं हाथों
मारने की जिद है।
तीन लोक सत खंड में
आज देव दीवाली !
तारुण्य शिखर के मध्य खडी है
प्रकृति स्वयं बनकर माली।
गंगा,जमुना की सहज हिलोरें
दीपों को गतिमय कर-कर
पूरी सृष्टि प्रकाश-मय कर डाली।
अद्भूत प्रकाश के परिपथ में
तिमीर भूल खुद की मर्यादा
देखो छककर आज पी रही
सरल सहज अमृत की प्याली।
कण-कण में अमृत का सिंचन
आज कर रही देव दीवाली।।
घाट के किनारे हुजूम के सहारे..
मैं देखता परिदृश्य जो बिल्कुल जुदा रहा।
मानव वहाँ गंगा बना,सूरज बना और राख..
या धुंवा में मिलकर,बिल्कुल खुदा रहा।
लंबा डगर वो मापता पहुंचा है यहाँ तक..
पर उम्मीद से ये असलियत तो अलहदा रहा।।
कभी वादियाँ गुलजार थीं,
पेडों की बस दीवार थी,
पक्षियों की चहचहाहट,
क्षितिज के भी पार थी।
हुक्मरानों की सभा या
मासूम का हो बचपना,
हर किसी की छांव का
पेड़ हीं था आसियां।
समय के बदलाव में
आधुनिकता की आधियाँ,
बर्बाद अब थी हर फिजा,
खत्म थी वो वादियाँ,
कंकरीटों की फसल
छूनें लगी आकाश को,
बस दिखावे की सनक
हर सख्श में विकास को,
कृतिम अब संयंत्र सब
मानव बना है यंत्र अब।
अरे अरण्य के सिंह...
और वनचर जीवों!
तेरे आंसू में मानव अपना
विजय देखता आया है।
बहुत काल आखेट किया
और आज मनोरंजन खातिर
तुमको पिंजरों तक ले आया।
दंभी अहंकार का राही
भूल गया लगता परिपथ।
इन जीवों पर क्रूर वो इतना
नर्क से बदतर इनका पथ।
बूंद की परिकल्पना,
सागर का मैं भी,अंश हूँ ?
लघुता भरे परिमाप में,
अलगाव का हीं दंश हूँ,
सोचते संकुचित हो,
जाकर जलधि से मिल गयी,
अपारता के भाव-मय,
गरिमा से पुष्पित खिल गयी,
जीव के लघुता का ये,परिमाप,
मापता है सृष्टि का परिताप।
भाव की भाषा??
सहज सब कुछ बताती,
दुख,वेदना पशु पक्षियों,
को भी सुनाती,
सत्य की दृष्टि वहाँ,
बिल्कुल,सहज स्पष्ट होती,
आंख हीं हैं बोलती,
और बस,आंखें हैं रोती।
दोष किसका है यहाँ?
समय बस बलवान है
कठपुतलियों के ऐ दिवानों
उंगलियों में जान है।
मैं चला जाउंगा..
उस क्षितिज के भी पार
अपना नाम लिखकर।
होश आये पढ सकोगे
तुम इसे गुमनाम लिखकर।
हर मुसाफिर रास्तों को
पग से हीं है मापता..
मेरे पग को रास्तों ने
माप दी परिमाप लिखकर।