क़त्ल होता है प्रतिभाओं का
क़त्ल होता है प्रतिभाओं का
क़त्ल होता है प्रतिभाओं का ,
जी हाँ! कत्ल होता है प्रतिभाओं का।
हर सड़क, हर चौराहे, हर मोड़ पर ,
होता है इसका हनन ।
हर घर में चढ़ाया जाता है,
इस पर आवरण।
क़त्ल करती हैं परिस्थितियाँ,
क़त्ल करती हैं खामोशियाँ,
क़त्ल कर देती हैं इसका, ईर्ष्या और जलन
क़त्ल होता है प्रतिभाओं का,
जी हाँ! कत्ल होता है प्रतिभाओं का।
कहीं कातिल है संप्रभु समाज,
कहीं कातिल है रीति रिवाज़,
कहीं पर ढोंग-आडम्बर करा देते हैं क़त्ल,
तो कहीं पर अज्ञान से कर लेती है ये ख़ुदकुशी।
गले में फाँसी डाल दिखावटी इज़्ज़त की ,
ये झूल जाती है।
ज़हर खिला कर आज्ञा का,
ये दफ़ना दी जाती है।
खानदानी शान के नीचे ,
ये कुचल दी जाती है।
तो कहीं मज़बूरियाँ ही खुद इसका ,
गला दबाती हैं।
अंततः प्रतिभा क़त्ल कर दी जाती है।
किसी अनहोनी के डर से समाप्त कर दी जाती है।
कर दिया जाता है अंतिम संस्कार प्रतिभाओं का।
क़त्ल होता है प्रतिभाओं का,
जी हाँ! क़त्ल होता है प्रतिभाओं का ।