मजदूर या मजबूर
मजदूर या मजबूर
जिस मजबूरी से हमने खुद को घर मे कैद कर लिया ,
उसी मजबूरी ने उसे चलने पर मजबूर कर दिया,
मीलों का फासला उसने कदमों से ही पूरा कर दिया,
घर जाने की मजबूरी ने उसे क्या से क्या कर दिया,
लेकर अपना परिवार वो अपने गांव की और चल दिया,
थके जो कदम तो पेड़ों की छाव को ही अपना आसरा बना लिया,
लगी जो भूख तो पानी पीकर पेट भर लिया,
तपती धूप ने इन मे से कितनो को अपना निवाला बना लिया,
किसी से जो मागी मदद तो उसने भी बिना पैसों के जाने से माना कर दिया,
लोगों की जान से भी बढ़कर पैसा है ,
उस ट्रक वाले और ठेकेदार ने यह बता दिया,
एक एक मजदूर के घर जाने कीमत ३००० थी,
बेचारे पहले से ही कंगाल थे ,
लेकिन पैसों के लालची लोगों ने तो इन्हें दर दर का भिखारी बना दिया,
मजबूरी ने मजदूर को शिकारियों का शिकार बना दिया,
हाय रे मेरे भारत तू भी यह सोचता होगा ,
ऐसे लोगों का क्या करू,
जिन्होंने पैसों को ही अपना भगवान बना लिया।