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padma sharma

Tragedy

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padma sharma

Tragedy

चीरहरण

चीरहरण

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चीर हरण क्या करे दुहशासन हरने को ही चीर नहीं है

आँखें बंद क्यों करें पितामह आँखों में वो पीर नहीं है


यहाँ तो हारी खुद ही सीता रावण हारा असमंजस में 

देह दुकान धरे बैठी ये सावित्री भी अधीर नहीं है


जिस तन में ममता का सागर उसमें अब कामुकता दिखती

विचार हुए हैं समृद्ध बड़े ही भाव मगर गम्भीर नहीं हैं


भारी हैं लाखों के जेवर वस्त्र हुए छोटे उतने हैं

सुन्दरता की लगीै नुमाइश रांझे की अब हीर नहीं है


जान लुटा दे देश की खातिर शत्रु का कर डाले संहार

अरि को अब जो मार गिराए शायद वो शमशीर नहीं है 


अपनों से ही आँच आन पर किस का करें भरोसा

बचा सके जो लाज नारी की ऐसा अब बलबीर नहीं है।


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