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padma sharma

Tragedy

4  

padma sharma

Tragedy

विज्ञापन की महिला

विज्ञापन की महिला

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चेहरे पर खुशी

आँखों में उत्साह

मेकअप की कई पर्तों में ढँकी

सजी-सँवरी

बाहर से हँसती हुई

अन्दर से गमगीन

पर खिली हुई दिखती हैं  

विज्ञापन की महिलाएँ


दिल में हैं कई ज़ख्म

छुपाकर उनको 

खिलखिलाती हैं

घर जाकर फिर उनसे

होना है रूबरू


वे कैमरे में और कमरे में 

होती हैं अलग - अलग

उनकी रील लाइफ

और रियल लाइफ 

होती है बिल्कुल अलग 


गर्मी के विज्ञापन में भी

मर्द रहते हैं सूट-बूटेड


असह्य सर्दी के विज्ञापन में 

है नारी अर्द्धवस्त्र

पता नहीं किसका 

कर रही हैं विज्ञापन

या दे रही हैं ज्ञापन


खोजी नज़रें तो

कपड़ों के अन्दर से भी

ले लेती हैं नाप

सीने और अधखुले वस्त्र

ओछे और छोटे वस्त्र

नाममात्र के कपड़े

कर रहे न प्रचार किसी वस्तु का 

साथ ही प्रसार किसी और ‘बात’ का 

                        

सब ओर वे ही दिख रही हैं

चाहे उत्पाद

मर्दों के लिए हों

स्त्री के लिए हों ,

या बच्चों के लिए


इनका होना जरूरी है

वे अपनी अदा 

अपनी देह

दिखाने का 

सबको रिझाने का

ले रही हैं मेहनताना


उन्हें नहीं मालूम 

वे बन गयी हैं श्रमिक

पैसा पा रही हैं श्रम का

पर वो भी आधा


तिजोरी भर रहे हैं 

वे लोग

जो देते हैं मेहनताना

शोषण कर रहे हैं 

जेबें भर रहे है

दे रहे हैं कम 

पा रहे हैं मनमाना

उनकी देह और मन के 

उत्पीड़न का बुन रहे हैं 

 सरेआम ताना-बाना



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