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padma sharma

Others

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खजाना

खजाना

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स्त्रियों के मन में होता है खजाना  

अहसास का...अनुभूति का...       

कजरी के खजाने जैसा


बचपन से वृद्धावस्था तक तिनका-तिनका जमा करती हैं खजाने में...

बहुत छुपाती हैं स्त्रियां 


उनके मन में बातों का एक खजाना भरा रहता है 

उस पोटली से जब निकल नहीं पाता सब 

तो उनींदी आँखों में सपने बन 

रात भयावह कर देता है


बचपन में नहीं बता पाई वह पिता को 

बगल के चाचा 

जिन्हें आप अपने भाई से बढ़कर मानते थे 

जब से उसके अंग विकसित हुए हैं 

देखते हैं उसे घूर घूर कर 

पास बुलाकर फेरते हैं सिर पर हाथ 

अब लाड़ दुलार पहले जैसा नहीं रहा...

अपने गले लगाना चाहते हैं भींचकर 

कई बार तो चीखने का मन होता है 


नहीं बोल पाई अपने भाई को... 

जिस दोस्त को आप मुझे स्कूल छोड़ने भेजते हैं 

वह छूना चाहता है मेरे उन अंगों को 

जो मेरे स्त्री होने का अहसास दिलाते हैं 


नहीं बता पाई माँ को 

बस में पिछली सीट पर बैठे व्यक्ति ने 

अपने अंगूठे से मेरे जिस्म को छूने का प्रयास किया 

मैं खिसकती चली गई अपनी सीट पर 

आगे और आगे ...

तब तुम भी मुझ पर चिल्लाई थीं

ठीक से नहीं बैठ सकती क्या 

मेरे ठीक से ना बैठने में 

पीछे वाले का पांव था माँ 

इस तरह के पांव तो 

पिक्चर हॉल की सीट पर भी मुझे परेशान करते रहे ।


नहीं बोल पाई किसी को 

आते-जाते चौराहे पर 

खड़े लड़कों की फब्तियां 

जो गालियों से भी घिनौनी होती हैं 

उनके हाथों के गंदे इशारे उनके मुंह से निकली 

तोपों के गोले 

छलनी करती हैं तन को भी मन को और ज्यादा ...


आज भी चस्पा हैं 

वो मन के कोने पर बैनर बन 

अपने पुरुष मित्र को भी नहीं बताए पायी 

कि उसका दोस्त मेरे लिए गलत बातें फैला रहा है 

जो मेरे अस्तित्व की धरोहर को 

नष्ट करने में तुली है  


नहीं बता पायी 

अपने पति को 

तुम्हारे बॉस ने मुझे मैसेंजर पर 

भेजे थे कई लिजलिजाते मैसेज 

उनकी पैनी बेहूदा खूंखार नजर 

चिपक गई थी पार्टी में 

मेरे पीछे और आगे 

जो नहाते वक्त भी अलग ना हो सकी 


मेरे मुंह खोलने पर पिता भाई मां के संबंध बिगड़ जाएंगे 

यह लगा देंगे मेरे पैर में जंजीर रोक देंगे मेरी ही उड़ान 

इन बाधाओं से पार करती आज मैं खुद एक बच्ची की माँ हूँ

मैंने खजाने का मुँह खोल लिया है अपने पिटारे से 

बढ़ती हुई बच्ची को एक-एक नसीहत देती जाती हूँ


उसे उसके खास अंगों की कराती हूँ पहचान ...

समझाती हूँ कोई गलत तरीके से छुए तुम्हारे स्त्रीत्व को 

तो बताना मुझे 

मैं अरावली पर्वत सी रक्षा करूंगी तुम्हारी 

तोड़ दूंगी उन हाथों को 

अपनी दुर्गा खड्ग से काट दूंगी हाथ

शाहजहां ने काटे थे हाथ कारीगरों के 

अपनी कारीगरी को 

मिटाने वालों के हाथ काट दूंगी मैं 

कोई फब्तियां कसी तो बता देना मुझे 

मैं प्रतिकार का तीर चला कर कर दूंगी उसका मुँह बंद 

जैसे एकलव्य ने किया था कुत्ते का मुँह बन्द


देखे जो कोई गलत निगाहों से

मैं दुर्गा बन दुष्ट आंखों का संहार करूंगी 


पर कैसे बचेगी बस ट्रेन की सीट पर 

पिक्चर हॉल की सीट पर 

मैं बताती हूं सदा साथ रखना पिन 

तुम्हारी तरफ बढ़ते पांवों में जोर से पिन चुभा देना 

उन पावों से रक्त के साथ उसका कलुष भी बह जाएगा 


पर पति के साथ जब रहोगी मैं कैसे बचा पाऊंगी तुम्हें 

मैं तुम्हें दुर्गा रूप से अवगत कराऊंगी 

काली की कथा सुनाऊंगी और पैदा करूंगी

तुम्हारे अंदर स्वाभिमान की ज्वाला 

कि तुम्हें कभी कहना ना पड़े मी टू।





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